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आज भी लोग गर्व से गाते हैं सीताराम कुमावत की शहादत के तराने

पाकिस्तान के सैनिकों से लोहा लिया और तीन चौकियों पर जीत हासिल की

कारगिल विजय दिवस –
आखिरी खत जिसमें लिखा – मेरी चिंता मत करना, मैं यहां कुशल हूं
पलसाना। राजस्थान की भूमि वीर प्रस्तुता रही है। जिसकी कोख से वीर रत्नों के साथ- साथ अनेक संतों ने भी जन्म लिया है। अमर सेनानियों का गौरवशाली इतिहास जहां हमें मातृभूमि के लिए बलिदान का संदेश देता है, वही कर्तव्य परायण की सीख भी मिलती है। यहाँ अनेक जातियों में वीर हुए हैं। वीर सैनिक अदम्य साहस, वतन की खातिर अपने प्राण न्योछावर करना, शरणागत की रक्षा के लिए शीश कटा सकते हैं लेकिन शीश झुका नहीं सकने वाले वीरों के इतिहास से पता चलता है कि वतन की रक्षा के लिए बचपन से ही घुट्टी पिलाई जाती है। गांवों में ये वीर सैनिकों के स्मारक यूहीं नही बने है। मां भारती के लिए वतन पर जान देनेवाले जांबाज सैनिकों के बने है, जो लोटकर घर नहीं आए। ऐसे ही वीरता पूर्ण शहादत की कथाएं वीर बहादुर कारगिल सैनिकों में से एक शहीद सीताराम कुमावत की कथा है जो हर कोई सुनने के लिए व्याकुल रहता हैं। शहीद सीताराम कुमावत की शहादत को हर वर्ष सर्वसमाज शहीद दिवस के रूप में मनाता है।
शेखावाटी में सीकर जिले के पलसाना कस्बे के रहने वाले सीताराम कुमावत वर्ष 1993 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। 13 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हुए। सीताराम कुमावत ने आखिरी बार परिवार के साथ होली का त्योहार मनाया था। जब शहीद हुए तो बेटी प्रियंका 5 साल और नीतू 4 साल की थी। वर्तमान में प्रियंका जयपुर ट्रेजरी में जूनियर अकाउंटेंट के पद पर नौकरी कर रही हैं। जबकि छोटी बेटी नीतू आर्किटेक्ट का कोर्स कर रही हैं। सीताराम कुमावत वो जांबाज़ हैं जिन्होंने 18 ग्रेनेडियर की अपनी टीम के साथ द्रास सेक्टर में दुश्मन की तीन चौकियों को तबाह किया। चौथी चौकी फतेह करने आगे बढ़े ही थे कि दुश्मन की मिसाइल का शिकार होकर शहीद हो गए। विरांगना सुनीता देवी के पास शहीद पति सीताराम कुमावत का एक आखिरी खत है जिसे उन्होंने संजोकर रखा है। यह खत उन्होंने अपनी बहन को संबोधित करते हुए पूरे परिवार के लिए लिखा था। बेटी प्रियंका जब भी पिता का आखिरी खत पढ़ती हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती हैं।

बेटियों को ही दिया बेटों जैसा प्यार
शहीद सीताराम कुमावत जब भी घर आते थे अपनी बेटियों का खूब ख्याल रखते थे उनको हमेशा बेटों की तरह ही लाड प्यार करते थे। कभी भी उन्होंने बेटे बेटी का फर्क नहीं रखा था।

घायल हालत में अंतिम बार की थी मां से बात
दुश्मनों द्वारा दागी गई मिसाइल का शिकार होकर घायल अवस्था में भी शहीद सीताराम कुमावत फोन के जरिए अपनी मां से बात की और तब मां ने कहा था कि बेटे जोर से बोल लेकिन शहीद इतना ही कह पाया कि मेरी बेटियों और घर परिवार का ख्याल रखना। शहीद परिवार आज भी अपने बेटे की मूर्ति घर पर मंदिर बना कर लगा रखी है और सुबह शाम पूजा करते हैं।

पिता ने अपने हाथों से बनाया बेटे का स्मारक
शहीद सीताराम कुमावत के पिता ने मार्बल मिस्त्री होने के कारण राजकीय विद्यालय में अपने बेटे का स्मारक अपने खर्चे और अपने हाथों से तैयार किया। बेटे की प्रथम पुण्य-तिथि पर तत्कालीन ग्रामीण विकास राज्य मंत्री सुभाष महरिया के द्वारा उद्घाटन करवा कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस किया था।

वे आज भी जिंदा हैं
करगिल का रण जीतने वाले शहीद के घर जब पत्रकारों की टीम पहुंची तो विरांगना सुनीता देवी की आंखों में शहीद पति की विरह के अश्क फूट पड़े। कांपते होठों से बार-बार यही कहतीं कि वे आज भी जिंदा है। विरांगना अपना सुख-दुख शहीद की प्रतिमा से सांझा करती हैं। शहीद का सपना था कि उनकी दोनों बेटियां भी देश सेवा में नाम कमाए और विरांगना भी उसी सपने को पूरा करने में जुटी हुई हैं। गांव में बना शहीद स्मारक सीताराम की याद को जिंदा रखे हुए है।

पिता की आंखें होती हैं नम
पलसाना गांव के शहीद बेटे सीताराम कुमावत की बात करते ही पिता की आंखें भी नम हो उठती हैं। उन्हें वो पूरा मंजर याद आता है कि कैसे बीस साल पहले उनका लाडला तिरंगे में लिपटा घर लौटा था। वे बताते हैं कि बास्केटबाल का राष्ट्रीय स्तरीय खिलाड़ी बनने के बाद 27 अप्रेल 1993 को सेना में भर्ती हुआ तो आंखों में बरसों से पल रहा सपना पूरा हुआ था। सीताराम शुरू से ही विरोधी टीम को हराने के लिए सारे पैंतरे बखूबी आजमाता और वैसा ही उसने करगिल युद्ध में किया था।

रिपोर्ट:- लोकेश कुमावत, पलसाना

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