( के सी राजा )
रींगस. कस्बे के लोक देवता भैरु बाबा का धाम करीब 600 वर्ष पुराना है। कालाष्टमी के दिन आकाशवाणी होने के साथ ही भैरुबाबा की प्रतिमा की स्थापना हुई थी। भैरु बाबा के दरबार मे देश विदेश के लाखों भक्त धोक लगाने के लिए आते है। भैरु बाबा मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों ने बताया कि मंदिर के बारे में उनके पूर्वजों ने बताया कि ब्रह्माजी के पांचवें मुख से शिवजी की आलोचना के बाद भगवान शिव के पांचवे रुद्र अवतार के रूप में भैरु बाबा के रूप में अवतरित हुए एवं अपने नाखून से ब्रह्माजी का पांचवा मुख धड़ से अलग कर दिया था। इसके बाद भैरु बाबा को ब्रह्महत्या का अभिशाप लग गया। अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी के आदेश पर भैरुबाबा ने तीनों लोकों की यात्रा की थी। पुजारी परिवार ने बताया कि भैरु बाबा मंदिर के पुजारी गुर्जर जाति से होने के कारण गायें चराते थे एवं मंडोर जोधपुर में निवास करते थे। गायें चराते समय एक छोटे पत्थर की गोल मूर्ति भैरु बाबा के रूप में झोली में रख कर पूजा अर्चना करते थे। अधिकतर गुर्जर गायें चराते समय तालाबों के किनारे ही रुकते थे। वें जहां भी रुकते वहीं झोली से भैरु बाबा की मूर्ति निकाल कर शाम को पूजा अर्चना के साथ भोग लगा कर सो जाते थे। सुबह उठकर नित्य कर्म के साथ पूजा अर्चना कर छोटे पत्थर की भैरु बाबा की मूर्ति को वापस झोले में रखकर गायों के साथ निकल जाते थे। इसीक्रम में मंडोर जोधपुर से चलते हुए दूदू के पास स्थित पालू गांव, जयपुर के पास स्थित बेनाड़ होते हुए रींगस में आकर तालाब किनारे रात्रि विश्राम किया। झोली से पत्थर की मूर्ति निकाल कर पूजा अर्चना के बाद खाना खाकर सो गए। सुबह रवाना होने के लिए मूर्ति को वापस झोले में डालने के लिए उठाने लगे तो वह उठी नहीं। उठना तो दूर की बात छोटे से पत्थर की मूर्ति हिल भी नहीं पा रही थी। मूर्ति को उठाने के लिए गुर्जर समाज के लोगों ने काफी प्रयास किए और नहीं उठने पर निराश होकर बैठ गए। इसके बाद अचानक आकाशवाणी हुई। स्वयं भैरू बाबा ने बताया कि उन्होने ब्रह्मा हत्या का प्रायश्चित करने के लिए पृथ्वी लोक की पदयात्रा इसी स्थान से शुरू की थी आज वही स्थान आ गया है और वे इसी स्थान पर निवास करना चाहते है। इसके बाद पुजारी परिवार के लोग यहीं रुक रुक गए। भैरू बाबा की मूर्ति की स्थापना कर पूजा अर्चना करने लगे। दिन में तालाब के आसपास गायों को चराकर जीवन यापन करने लगे।
मूर्ति ने शमशान की भस्म से विशाल रूप किया धारण
प्रतिहार गोत्र के गुर्जर समाज द्वारा भैरु बाबा की पूजा अर्चना की जाती है। उनके अनुसार मार्गशीर्ष की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन ही भैरु बाबा शिवजी के पांचवे रूद्र अवतार के रूप में अवतरित हुए थे। पूर्व में भैरुबाबा की प्रतिमा के चारों ओर शमशान होने के कारण हवा के झोंकों के साथ उठने वाली भस्मी को भैरुबाबा की प्रतिमा धारण करती थी। शमशान की भस्मी को धारण करके भैरु बाबा की मूर्ति विशाल होती गई। लेकिन वर्तमान में मंदिर का जिर्णोद्धार होने के बाद मंदिर चारों तरफ से बंद होने के कारण मूर्ति यथास्थिति रूप में है।
पवित्र जोहड़ी में स्नान से मनोकामनाएं होती है पूरी
भैरुबाबा के धाम पर आने वाले श्रद्धालु पवित्र जोहड़ी में स्नान करके बाबा की पूजा अर्चना करते है। मान्यता है कि इस जोहड़ी में स्नान करने के बाद पूजा अर्चना करने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है। दिल्ली, यूपी, एमपी, हरियाण, पंजाब सहित देश के कोने कोने से लोग भैरूबाबा की पूजा अर्चना के लिए रींगस आते है। भाद्रपद महिने में लोग अपने छोटे बच्चों के जात जडूले भी भैरूजी मंदिर में उतारने के लिए आते है। भैरवाष्टमी के दिन अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मंदिर पुजारी हरीश गुर्जर ने बताया कि मंदिर का विशेष श्रृंगार करके बाबा की प्रतिमा को सजाया जाता है। मंदिर में केक काटकर बाबा का जन्मदिन मनाया जाता है। इससे पूर्व आतिशबाजी की जाती है व दिन मे भैरव नामावली के पाठ, सत्संग, हवन-कीर्तन, जागरण सहित अनेक कार्यक्रम आयोजित होते है।